Thursday 13 February 2014

शर्म है

बढ़ रहा है देश अपना, जागो यह एक भर्म हैं
आज हर भारतीय को, हर भारतीय पर
शर्म हैं, बस शर्म है

रखेल बन गया है संसद
कुछ असामजिक तत्वो का
कुछ गुंडे कुछ मवालियों का
कुछ भ्रास्त बलात्कारियों का
धर्म के नाम पर भड़कना धमकना
आज इनका धर्म हैं

आज हर भारतीय को हर भारतीय पर
शर्म हैं, बस शर्म हैं

चलता बस देश अब
पूंजीपतियों के दम पर है
लड़ निकलो जब अपने हक़ के लिए तो
बाधा हर कदम पर हैं
इन पूंजीपतियों के कारण ही
महँगाई अपने चरम पर है

ऐसेक्रोनी कॅपिटलिज़म का
बाजार अब भी गरम हैं

आज हर भारतीय को हर भारतीय पर
शर्म है, बस शर्म हैं

रैन्गते है क़ानून यहाँ
जो कुचले जातें हैं
आतंकी बालकारियों द्वारा
सन्न कर दिया हैं हमें लुटती हुई लाज ने
जीवित को मुर्दा कर दे उस समाज ने
इन बड़े लोगों पर
साहेब अब भी नरम है

आज हर भारतीय को हर भारतीय पर
शर्म है, बस शर्म हैं .

Monday 10 February 2014

यह मौसम कुछ सर्द है इन हवाओं मे कुछ दर्द है

यह मौसम कुछ सर्द है
इन हवाओं मे कुछ दर्द है

सिसकियाँ लेती है साँसे
जो रुकती सी आती है
यादों के कारण
कुछ रिश्ते थे
वो बह गये कौमी इकतिलाफ में
रिश्तों के हरे मैदान
अब बंजर है
उन रिश्तों की यादें अब
चुभती जेसे कोई खंजर है

यह मौसम कुछ सर्द है
इन हवाओं में कुछ दर्द है

जाड़े में ठिठुरती सी थी वो औरत
छोड़ आई थी घर भार
दंगो का कहर था
उससे बड़ी थी सर्दी की मार
तंबुओ का घर, पर नही मुड़ सकते वापिस
जहाँ लोगों का रक्त गर्म और रूह सर्द है
वहाँ की हवाओं में कुछ दर्द है

मुन्ना सांस नही लेरहा, कहर का जंजाल है
भागा मैं उस औरत के घर पर, देखा कुदरत की जो मार है
साँसे थम गयी, उसका जिस्म सर्द है
दफ़नाउंगी इसे अपने गाव में, वहाँ लाशो की भरमार है
मरता कौन है सर्दी से, कहती अपनी सरकार है